Tuesday, August 26, 2025
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कंडारी के घर में कमल का खिलना,राजीव कंडारी का भिलंगना प्रमुख बनना सुखद – Sainyadham Express

कंडारी के घर में कमल का खिलना

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उत्तराखंड के वरिष्ठ और पुराने नेताओं में शुमार मातबर सिंह कंडारी के बेटे राजीव कंडारी की राजनीति में प्रभावी इंट्री हो गई। उनके घर में कमल (राजीव) खिल गया है। कुछ वर्षों से उत्तराखंड की राजनीति में हाशिये पर बैठे मातबर सिंह कंडारी के लिए यह सुखद क्षण हो सकता है कि उनके पुत्र को टिहरी गढ़वाल के भिलंगना विकासखंड से प्रमुख पद पर जीत मिली है। संयोग यह कि मातबर सिंह कंडारी भी इसी ब्लॉक अर्थात् तत्कालीन जखोली ब्लॉक से प्रमुख बनकर राजनीति के क्षेत्र में गये थे। मातबर सिंह कंडारी ने जब 80 के अंतिम दशक में उत्तर प्रदेश के समय में पहली बार देवप्रयाग विधानसभा क्षेत्र से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ा, तब उनका चुनाव चिह्न तराजू था। अब तब पं0 नेहरू स्मारक इंटर कॉलेज आछरीखुंट में ग्यारहवीं के विद्यार्थी थे। कंडारी जी के साथ जनसभाओं में केवल दो-तीन लोग ही साथ चलते थे। कंडारी जी जब भाजपा के बैनरतले विधायक बने तो उनका कद बढ़ा। उत्तर प्रदेश सरकार में उन्हें मंत्री का दर्जा मिला। तब उनकी खूब चलती थी। मसूरी में पत्रकार रहते कई बार उनसे कार्यक्रमों में भेंट होती थी, उन्हें कई बार जनहित के काम बताये, लेकिन उनसे हो नहीं पाये। हां, मेरे जलविहीन गांव में पंपिंग योजना के माध्यम से पानी पहुंचाने का ऐतिहासिक श्रेय अवश्य कंडारी जी को जाता है। कंडारी जी दिवाकर भट्ट की तरह सीधी-सपाट और बिना लाग-लपेट वाली भाषा के लिए जाने जाते हैं। उनमें दिवाकर की ही तरह कलुषित राजनीति की पैंतरेबाजी नहीं है। वे सीधे पहाड़ी की तरह अपनी बात खम ठोककर कह देते हैं। भाजपा से नाराज एक बार मातबर सिंह कंडारी जी कांग्रेस में गये, परंतु वहां घुटन होेने के कारण वापस पुराने घर में आ गये। टिहरी से लोकसभा जाने की उनकी तमन्ना को भाजपा पूरा नहीं कर पायी। कटे पर नमक का छिड़काव यह कि पार्टी ने उनकी आवगभगत करनी छोड़ दी, जैसे कि अनुपयोगी पेन को हम पेनदान से हटा देते हैं। वे रुद्रप्रयाग से अपने साढ़ू हरकसिंह से हारे तो कहीं के नहीं रहे। कुछ दिन वे फेसबुक पर राजनीति इत्यादि मसलों पर वीडियो बनाकर डालते थे, लेकिन वहां भी आजकल दिखाई नहीं देते हैं। कंडारी जी दिल के निश्छल हैं। उनका दिवाकर भट्ट के साथ एक गुण और मेल खाता है। वे जिस आदमी को एक बार मिलते हैं, वह बहुत दिन बाद दिखाई दे तो वे भूल भी जाते हैं। कुछ दिन से छटपटा रहे और कोपभवन में चले गये कंडारी जी के लिए आज का दिन प्रसन्नता और सुकून देने वाला तथा उम्मीदों के अंकुर फूटने वाला हो सकता है। कंडारी जी ने एक प्रकार से अब अपनी राजनीतिक विरासत राजीव कंडारी को सौंप दी है। उन्होंने शूरवीर सिंह सजवाण और हरीश रावत से इस मामले में बाजी मार दी है। वे हरीश रावत की तरह अपने बेटे को उंगली पकड़कर सभा, सम्मेलनों और जलसों में नहीं ले गये, बल्कि भीतर ही भीतर वे गुरुमंत्र देते रहे, जो और जितने उनके पास थे।
यह भी माना जा रहा है कि अगली बार घनसाली विधानसभा सीट अनारक्षित हुई तो राजीव वहाँ से भाजपा से विधायक के टिकट के दावेदार हो सकते हैं। अगली बार देवप्रयाग सीट के आरक्षित होने के कयास लगाए जा रहे हैं।
कुछ भी हो कंडारी जी को देवप्रयाग क्षेत्र में सम्मान के साथ याद किया जाता है। उन्होंने अपना खजाना कितना भरा, यह तो वही जानेें, लेकिन यह बात सत्य है कि वे जहां के भी विधायक रहे, काम तो किया ही है। उन्होंने जो भी आदमी कमाये, अपने अक्खड़पन स्वभाव के बावजूद कमाये, चिफळी घिच्ची से नहीं।
-डॉ0 वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल, देवप्रयाग

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