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केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 वरखेड़ी के सामने योग छात्रों ने खुलकर रखीं समस्यायें
पहली बार आयोजित अनोखे संवाद कार्यक्रम में उत्साहित दिखे छात्र, अगले साल योग श्लाका होगी
डॉ0 वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल
(जनसंपर्क अधिकारी श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग)
देवप्रयाग। उनकी बातों में बेबाकी थी, मासूमियत भी झलक रही थी। भले ही शब्दबोध कम था, पर पीड़ा को किसी न किसी प्रकार बयां करने में कसर नहीं छोड़ी। वे खुश थे कि बिना दबाव और बिना भय के उन्हें मन की बात कहने का अभूतपूर्व अवसर प्रदान किया गया। उनके मन में योग के प्रति गहन प्रेम है और योग की बदौलत जीवन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना है। हम बात कर रहे हैं केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के विभिन्न परिसरों के योग छात्रों की।
21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में संस्कृत विश्वविद्यालय के योगाभ्यास का मुख्य कार्यक्रम श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग,उत्तराखंड में आयोजित हुआ। यहीं कुलपति प्रो0 श्रीनिवास वरखेड़ी का ’प्रत्येक परिसर में प्रवास’ कार्यक्रम भी चल रहा है। योगाभ्यास कार्यक्रम के बाद कुलपति ने योग छात्रों के साथ संवाद किया। गुरुवायूर, शृंगेरी, भोपाल, मुंबई, लखनऊ, देवप्रयाग, वेदव्यास, अगरतला आदि परिसरों के योग छात्रों ने खुले मंच पर कुलपति के सामने वे सभी समस्यायें रखीं, जिनका सामना उन्हें योग शिक्षा ग्रहण करने के दौरान होता है। छात्रों की बातों में निश्छलता का प्रतिबिंबन था और मन मंे कल्पनाओं की उदात्त लहरें थीं। किसी ने ध्यान केंद्र की आवश्यकता महसूस की तो किसी ने छात्रों की कमजोर आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए शुल्क कम करने की पैरवी की।
कुलपति ने समस्याओं को गंभीरता से लिया और उनके निस्तारण का आश्वासन दिया। बेहतरीन प्रतिभा दिखाने वालों की पहचान कर कुलपति ने अपने विशेषाधिकार से ऐसे छात्रों का चयन पुरस्कार के लिये किया, यह बात भी छात्रों के लिए अनूठी थी। ’तुरंतदान महाकल्याण’ की कहावत पहली बार चरितार्थ होते देख छात्रों के चहरों पर उत्साह देखते ही बनता था। जब कुलपति ने कहा कि अगले साल विश्वविद्यालय मंे योग और योग का कार्यक्रम और निखरेगा तो पंडाल का तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजना स्वाभाविक था।
इस अभिव्यक्ति छात्रों की समस्या अभिव्यक्ति के तरीके ही परीक्षा नहीं थी, बल्कि उनकी वाक्शैली का भी इम्तिहान हो रहा था। कुछ योग अध्यापक अपने छात्रों के कुछ शब्दों पर असहज प्रतीत हो रहे थे, परंतु कुलपति ने शब्दों के बजाय भावना पर ध्यान दिया। मंच पर आकर कुछ न कुछ बोलने वाले हर छात्र की वे पीठ थपथपाते रहे और मुस्कुराहट के अनोखे अंदाज मंे उसकी समस्या के निस्तारण का सांकेतिक आश्वासन भी देते रहे।
अभिव्यक्ति के इस क्रम में वेदव्यास परिसर, हिमाचल की आरती ने वहां योगाभ्यास के लिए समुचित स्थान उपलब्ध करवाने की मांग की। आरती का कहना था कि निश्चत रूप से योग की पढ़ाई कर वृत्ति मिलेगी, परंतु गरीब छात्र इतना अधिक शुल्क वहन करने में सक्षम नहीं हैं, इसे थोड़ा कम किया जाए। लखनऊ के अभिषेक भट्ट ने परिसर में योग हॉल निर्माण की आवश्यकता जताई। श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग के अंकुश सिन्हा ने कहा कि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में मॉडर्न क्षेत्र से इस आये छात्रों के लिए ऐसा वातावरण बने कि वे अपने को अलग-थलग महसूस न करें। शृंगेरी परिसर की पूर्णिमा ने रोग निदान में योग की शक्ति का उल्लेख करती कविता सुनाई। पूर्णिमा की अभिव्यक्ति शैली, छंद, शब्दविन्यास और कविता की अंतर्वस्तु से अत्यंत प्रभावित हुए कुलपति प्रो0 वरखेड़ी ने मंच से ही तत्काल पूर्णिमा को विशेष पुरस्कार देने की घोषणा कर दी। जयपुर परिसर की सूरज शर्मा योग पर लिखे नारों का मंच से घोष कराया। भोपाल परिसर के शुभकांत झा ने कहा कि हम संस्कृत पढ़ने वाले बच्चों के प्रति अनेक लोगों की सोच रहती है कि यह कंधे में झोला लेकर पंडिताई ही करेगा, अतः ऐसी सोच बदलेगी तो संस्कृत का उत्थान निश्चित है। मुंबई परिसर के प्रथमेश थिटे ने कुलपति से मुंबई में अपने परिसर भवन और छात्रावास की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि भारत जैसे महान् राष्ट्र के महाराष्ट में संस्कृत के उत्थान के लिए विश्वविद्यालय को इन दो समस्याओं का निस्तारण करना ही होगा। इसी प्रकार गुरुवायूर और अगरतला परिसर के छात्रों ने भी अपने विचार रखे।
इस बीच ऐसा क्षण भी आया, जब श्री जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के छात्रों की पेंटिंग देख वीसी बड़े भावुक हो गये। छात्रों ने प्रकाण्ड विद्वान स्वामी रामभद्राचार्य जी तथा प्रो0 वरखेड़ी जी की पेंटिंग बनाई थीं। इनका मंच पर अनावरण किया गया। अधिष्ठाता योगविज्ञान प्रो0 वनमाली बिश्वाल ने कहा कि छात्रों की समस्याओं पर विचार किया जाएगा। उन्होंने पहली बार हुए इस खुले संवाद कार्यक्रम को शिक्षा के उन्नयन के लिए महत्त्वपूर्ण बताया।
कुलपति प्रो0 श्री निवास वरखेड़ी ने इन सभी समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए इनके निस्तारण का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और उसके परिसरों को छात्र केंद्रित बनाना परम लक्ष्य है। छात्रों की वाजिब आवाज दबायी नहीं जानी चाहिए, वरना वह विस्फोट के रूप में बाहर आती है। छात्रों की अनेक मांगों को जायज करार देते हुए उन्होंने ’मांग और आपूर्ति’ अर्थात् डिमांड एंड सप्लाई सूत्र का उदाहरण दिया और कहा कि इसी आधार पर सभी विकास कार्य किये जा रहे हैं। छात्रों का हौसला बढ़ाते हुए कुलपति ने कहा कि सर्वांगीण होना आज के युग की आवश्यकता है। संस्कृत वालों को संस्कृति का ध्वजवाहक भी बनना होगा। संपूर्ण भारतीय ज्ञान को धारण करने वाले के पास वृत्ति की कमी नहीं है। आज योग विश्वभर की डिमांड बन चुकी है। सरकार को हर दूतावास में योगशिक्षक रखने चाहिए।
उन्होंने मंच से घोषणा की कि विश्वविद्यालय अब हर साल योग श्लाका स्पर्धा का आयोजन करेगा। छात्रों के योगासनों को देख अभिभूत हुए कुलपति ने कहा कि भले ही योग आचार्य छात्रों की खामियों को ढूंढ रहे होंगे, परंतु मैं उनके गुणों को देख रहा था। मैंने ऐसे कुछ छात्रों को मन ही मन पुरस्कार के लिए चुन लिया है। उन्होंने कहा कि हमने योग को गंभीरता से लिया है, छात्र भी इसे गंभीरता से लें। एक साल में हम अपने विश्वविद्यालय में योग और योग विद्यास्थान का कायाकल्प कर देंगे। देवप्रयाग परिसर मंे योग कार्यक्रम की व्यवस्थाओं पर बेहद प्रसन्न दिखे कुलपति ने कहा कि इस दुरूह क्षेत्र में व्यवस्थायें जुटाना दुष्कर कार्य है, परंतु परिसर ने इसके बावजूद बहुत सुंदर व्यवस्था की। इसके लिए उन्होंने निदेशक प्रो0 पीवीबी सुब्रह्मण्यम और व्यवस्था में लगे अध्यापकों तथा कर्मचारियों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि गंगा के तट पर भगवान श्री रघुनाथ के मंदिर के निकट पूरे भारत का एक साथ दिखना स्वयं में एक अनोखा आनंद है। कार्यक्रम का संचालन विशेष अधिकारी प्रो0 जगन्नाथ झा ने किया। डॉ0 मनीषा आर्या ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर जयपुर परिसर के निदेशक प्रो0 सुदेश शर्मा, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के पूर्व निदेशक प्रो0 विजयपाल शास्त्री, वर्तमान निदेशक प्रो0 पीवीबी सुब्रह्मण्यम, डॉ0 शैलेंद्र नारायण कोटियाल, डॉ0 मनीष जुगरान, डॉ0 शैलेंद्र प्रसाद उनियाल, डॉ0 सुधांशु वर्मा, अंकुर वत्स, अजयसिंह नेगी, डॉ0 सुशील प्रसाद बडोनी, डॉ0 रम्या पी.आर.डॉ0 गीता दुबे, डॉ0 दिनेशचंद्र पाण्डेय, डॉ0 अवधेश बिल्वाण, डॉ0 अरविंद सिंह गौर, डॉ0 अमंद मिश्र, डॉ0 मनीष शर्मा, डॉ0 विचित्र रंजन पंडा, डॉ0 श्रीओम शर्मा, वरुण कौशिक, जनार्दन सुबेदी आदि उपस्थित थे।
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