विदेश से लाखों की नोकरी छोड़कर माटी की सेवा के लिए लौटे यशवंत सिंह बिष्ट, मिलेगा उत्तराखंड रत्न द्रोणा अवार्ड
जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है
जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी है
अभी तो नापी है बस मुट्ठी भर जमीन
अभी तो पूरा आसमान बाकी है
ये पंक्ति फिट बैठ रही है यशवंत सिंह बिष्ट पर जो पिछले 32 वर्षों से देश विदेश से लेकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
यशवंत सिंह बिष्ट इन्होंने 32 साल से देश और विदेशों में अपनी सेवाएं दी है अभी यह लैंसडाउन में रुके हुए हैं और गांव में रहते हैं गांव में अपना फार्म हाउस है और टूरिज्म को बढ़ावा देते हैं और उसके लिए कार्यरत रहते हैं अपने उत्तराखंड और लैंसडाउन टूरिज्म को और आगे बढ़ाना चाहते हैं और उसके लिए निरंतर प्रयास करते रहते हैं और उन्होंने काफी होटलों को ओपन किया है और छोटे से गांव से शुरुआत करके आज इस मुकाम पर है यह उत्तराखंड के रिखणीखाल ब्लॉक के शिनाला गांव के निवासी है और बहुत मेहनती और जुझारू व्यक्ति है उनके आने से लैंसडाउन में बहुत से युवाओं को रोजगार प्राप्त हुआ है और आगे भी रोजगार के अवसर तलाशते रहते हैं जिससे कि युवा आगे बढ़े और उत्तराखंड में ही कार्यरत रहे इसके लिए वह निरंतर प्रयास करते रहते हैं इस समय वह GM के पद पर रहकर अपनी सेवाएं होटलों में दे रहे हैं और नए-नए रोजगार के अवसर युवाओं के लिए निकालने पर लगे रहते हैं जिससे युवा उनसे बहुत अत्यधिक प्रेम करते हैं। लगातार अच्छे कार्य करते रहने की वजह से बिष्ट जी की ख्याति लैंसडाउन के अंदर अत्यधिक है लोगों में उनका व्यवहार एक अच्छा प्रवक्ता की काबिलियता और कार्य को करने की कुशलता अत्यधिक है जिस कारण लैंसडाउन में लगातार उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जारी है। विश्व जब महामारी से जूझ रहा था उस समय अपने गांव अपने उत्तराखंड की तरफ बिष्ट जी का एक सुनहरा काम था विपत्ति को अवसर में कैसे बदला जाए इसके लिए उन्होंने बहुत प्रयास किया और कोविड जैसी महामारी के बाद लैंसडाउन को अपने घर आंगन की तरह संवारने का कथक प्रयास किया जिसमें उन्हें काफी विपत्तियां और परेशानियों का सामना भी करना पड़ा लेकिन उनका संकल्प पर्वत की तरह मजबूत था जिस कारण उन्होंने लैंसडाउन में रोजगार के नए-नए अवसर तराशते रहे और युवाओं के लिए निरंतर प्रयास करते रहे इसलिए बिष्ट जी आज लैंसडाउन क्षेत्र में किसी भी परिचय के मोहताज नहीं है उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए सब उनकी सराहना करते हैं और लगातार उनके संपर्क में रहते हैं। बिष्ट जी के इन प्रयासों को देखकर कुछ लाइनें याद आती है जिनसे बहुत हौसला मिलता है।