यह तस्वीर कोई मामूली संदेश नहीं देती बल्कि एक जागरूक नागरिक और संवेदनशील शासक की संवेदनशीलता को तस्दीक करती है।
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इसे समझने के लिए अगस्त, 2017 के सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले की तरफ़ जाना होगा जिसने *तलाक़ ए बिद्दत* को ग़ैरक़ानूनी ठहराते हुए याचिकाकर्ता को बड़ी राहत दी थी। वो याचिकाकर्ता काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) उत्तराखण्ड की रहने वाली *शायरा बानो* थी।
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उस समय किसे पता था कि उसी जनपद के दूसरी बार चुने गए एक युवा विधायक किसी रोज़ राज्य के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होंगे और समान नागरिक संहिता जैसा बहु प्रतीक्षित क़ानून लागू कर आधी आबादी को बराबरी का अधिकार दिला देंगे।
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यह संयोग ही है कि जिस राज्य की एक मुस्लिम महिला ने अपने अधिकारों के लिए समाज से लोहा लिया और सालों पुरानी कुरीति को उखाड़ फेंकने का साहस दिखाया, तदुपरांत उसी राज्य से देश में पहली बार समान नागरिक संहिता रूपी गंगा भी प्रवाहित हुई।
इन सभी संयोगों में एक किरदार हमेशा याद रखा जाएगा जिसने नफा- नुक़सान की फिक्र किए बगैर राखी का फर्ज निभाते हुए बहनों के अधिकारों की रक्षा हेतु एक ऐसा युगांतकारी निर्णय लिया जिसने देश के इतिहास को बदल कर रख दिया।
*इतिहास के पन्नों में उत्तराखण्ड और पुष्कर सिंह धामी का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया।* कुछ लोगों को शायद आज इस निर्णय में कुछ खास न दिख रहा हो परंतु कालांतर में इसके सुखद परिणाम देखने को जरूर मिलेंगे।
“आज शायरा बानों जैसी करोड़ों मुस्लिम बहनों के लिए किसी धर्म-भाई से कम नहीं है मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी।”
आने वाली पीढ़ियाँ इस साहसपूर्ण फ़ैसले के लिए आपको हमेशा याद रखेंगी धामी जी..