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देहरादून। उत्तराखंड को नौकरशाहों खासतौर से आईएएस अफसरों ने मौज काटने वाला राज्य मान लिया है। जहां उनका सीधा सा ध्येय ये बन गया है कि नौकरी कराओ तो उनकी मनमर्जी से नहीं तो साहब हम तो इस्तीफा दे देंगे
आज संडे को भी अपने तबादले से खफा एक अफसर बाबू मुँह फुलाये बैठे हैं। इनके इस्तीफा का एक लेटर वायरल होने की बात कही जा रही है।
अब बड़ा सवाल ये की अगर सरकार, अफसरों के तबादले पहाड़ी जिलों में नहीं करेगी और आईएएस अफसर ही पहाड़ पर नौकरी के लिए आनाकानी करेंगे तो फिर बाकी तमाम कार्मिकों की क्या गलती। फिर तो सबको उनकी मनपसंद जगह पर पोस्टिंग दे दी जाए। आईएएस अधिकारियों की इतनी बुरी स्थिति हो चुकी है कि चारधाम यात्रा रूट जैसे जिलों में ये काम करने को तैयार नहीं। युवा अधिकारी इतने कंफर्ट जोन में रहना चाहते हैं कि या तो मैदानी जिला मिल जाये और अगर ये नहीं मिला तो देहरादून से लगते जिलों में ही इनकी नौकरी चलती रहे।
वहीं, जिन साहब के इस्तीफे की चर्चा सामने आयी है अब उन्हें लेकर कुछ और चर्चाएं भी बता दें।
चर्चा है कि साहब का बनारस में एक अस्पताल है। अब अस्पताल बनकर तैयार हो गया है तो चर्चा है कि मान्यवर वहां जाकर उसे संभालना चाहते हैं, ऐसे में सवाल ये की अगर यही सब करना था तो civil services क्यों जॉइन की। कहीं से mba इन हॉस्पिटल मैनेजमेंट करते और अस्पताल सम्भालते। दूसरी चर्चा इन्हीं को लेकर ये है कि इसी तरह की हरकत ये एक बार हरिद्वार में रहते हुए भी कर चुके हैं।
उठते सवाल
-अगर आईएएस ही नहीं जाएँगे पहाड़ तो कौन जाएगा?पहाड़ में जाने से क्यों बच रहे हैं
-सीडीओ से सीधे बनाये गए थे डीएम
-सरकार का विवेक है वो किसको कहाँ का DM बनाये
-फ़िलहाल नाराज़गी का कोई कारण नहीं है। खुद mbbs डॉक्टर हैं, बनारस में क्लिनिक है इसलिए चाहते हैं रुखसती
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