गर्व का पल: उपराष्ट्रपति ने लोक नृत्य महान विभूति जगदीश ढौंडियाल को संगीत नाटक अकादमी अमृत अवार्ड से किया सम्मानित: जाने कौन है जगदीश ढौंडियाल – RAIBAR PAHAD KA


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आजादी के 75 में अमृत महोत्सव मैं उत्तराखंड के चार महान विभूतियां को उपराष्ट्रपति द्वारा नई दिल्ली विज्ञान भवन में सम्मानित किया गया जिसमें

जुगल किशोर पेटशाली चितई अल्मोड़ा को लोग संस्कृत में संपूर्ण योगदान के लिए सम्मानित किया गया

वही पौड़ी गढ़वाल से जगदीश ढौंडियाल को लोक संस्कृति में गायन व नृत्य को लेकर सम्मानित किया गया

भैरव तिवारी हल्द्वानी को लोक रंगमंच रामलीला लोकवाद्यों को लेकर सम्मानित किया गया

नारायण सिंह बिष्ट चमोली गढ़वाल को लोक संगीत काले का सम्मानित

पौड़ी जिले के बीरोखाल ब्लॉक के ग्राम सभा शिला तल्ला
के दिवाली गांव में जन्मे जगदीश ढौंडियाल पुत्र स्वर्गीय श्री संगत राम ढौंडियाल माता स्वर्गीय श्री परेश्वरी देवी की शिक्षा दीक्षा दिल्ली हायर सेकेंडरी स्कूल में दसवीं की जगदीश पहले से ही कलाकारी के क्षेत्र में रहे हैं और रामलीला मंथनों को भी कही बार लक्ष्मण का रोल दे चुके हैं हालांकि उनकी दीक्षा जयपुर घराने के सुप्रसिद्ध गुरु कत्थक गुरु स्वर्गीय श्री हजारीलाल जी के महाराज के हुए शिष्य रहे हैं परंपरा के अंतर्गत लगभग 18 वर्ष तक जगदीश ने गुरु आश्रम में नृत्य शिखा
गीत एवं नाटक प्रभाव में लगभग 14 वर्ष तक नृत्य निर्देशन किया महाकवि श्री जयशंकर प्रसाद जी की कामयाबी के लगभग 25 सौ से अधिक कार्यक्रम नृत्य नाटिका के माध्यम से पूरे भारत में किया शास्त्रीय पद्धति और लोक संस्कृति का मिलन प्रयोग परंपरा संगीत भेज भूसा प्रकाश तथा रंगमंच के बारे में पूरी जानकारियां व्याकरण के निम्न अभिनय कथा वस्तु तथा उसके माध्यम भारत के मुनि जी के नाट्य शास्त्र के बारे में ज्ञान कथाएं प्रस्तुतीकरण के बारे में गुरु लोगों से बड़े कुछ ऐसी की गई इन 60 वर्षों के अनुभव में दूरदर्शन के कई कार्यक्रम किया 1984 के गणतंत्र दिवस पर गांधी दर्शन को नृत्य रूप में 10 कलाकारों की झांकियां गांव चलो और गांव चलो गांव चलो भाई शेरों का जीवन या बड़ा दुखदाई है इस नृत्य का निर्देशन भी जगदीश द्वारा किया गया

प्रांतीय सरकारों से भी प्रशस्थित पत्र तथा गर्व भरे मेहमान तो भी जगदीश द्वारा प्राप्त किए गए मुख्य धारा कत्थक परंपरा के अंतर्गत अंग भाव आदि व्याकरण की बद्थ्ओं को लेकर को लेकर लेखक कथानकों का मंचन रामताल कविताओं तथा नित्यादि विषयों की जानकारी के अनुसार सेवा की है

हालांकि उत्तराखंड राज्य सरकार ने कभी भी जगदीश ढौंडियाल की कलाकृतियों पर ध्यान नहीं दिया और ना ही पर्यटन विभाग ने

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