Sunday, September 8, 2024
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वर्षा के साथ जल कलश श्रीमन्न नारायण भजनों से हर्रावाला भक्तिमय – RAIBAR PAHAD KA


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आज हर्रावाला (देहरादून) काली मंदिर वाली गली के फिल्ड मे सुदामा प्रसाद भट्ट की पुण्य स्मृति में भट्ट बंधुओं के द्वारा श्रीमद्भागवत महापुराण का आयोजन किया गया, इससे पूर्व रेलवे स्टेशन हनुमान मंदिर से ढोल दमऊ की थाप मे पीत वस्त्र मे सिर पर कलश लिए माताएं श्रीमन्नारायण,bhjmannaraya भजन गाते हुए महिलाएं व भक्तजन कथा पंडाल मे जाकर विद्वान ब्राह्मणो ने वेद मंत्र उच्चारण करते हुए भगवान लड्डू गोपाल का अभिषेक किया और कलशों को स्थापित करने के बाद ज्योतिषपीठ व्यासपद से अलंकृत सुप्रसिद्ध कथा वाचक आचार्य शिवप्रसाद ममगाईं जी ने कहा भागवत मे तीन मंगलाचरण तीन रति माधुर्यपूर्ण पंचभाव युक्त जो ग्रंथ के दर्शन मात्र से सब कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। बुद्धि का उपयोग केवल अर्थोपार्जन मे नही बल्कि भगवद भजन मे करने पर जीवन मे परिपूर्णता आ जाती है, आचार्य कहते हैं, जहां जन्म है वही कर्म है जीवन कर्म का ही व्यर्थ पर्याय है जन्म के साथ ही कर्मों का आरंभ होता है तथा मृत्यु के साथ यह समाप्त होते हैं इसलिए जीवन ही कर्म है तथा मृत्यु कर्म का अभाव है मृत्यु के बाद चित पर उनकी स्मृतियां शेष रह जाती हैं जो कई वासनाओं को जन्म देती है यही नए जन्म के कारण है जगत की गति वृताकार है इसका ना कहीं आदि है न अंत सृष्टि निर्माण एवं विध्वंस का कार्य सतत रूप से चल रहा है जहां यह व्रत पूरा हो जाएगा तथा पुनः नई सृष्टि के लिए अवसर उपस्थित हो जाएगा इसी प्रकार कर्म और वासनाओं की गति वृताकार है कर्म से स्मृति और संस्कार बनते हैं तथा इन संस्कारों के कारण वासना उठती है जिससे कर्म होते हैं इस वासना से ही जन्म मृत्यु एवं पुनर्जन्म का चक्र आरंभ होता है वासनाओं का मूल अहंकार है तथा अहंकार के गिरने से वासनाये भी समाप्त हो जाती हैं इन भोगों से अहंकार ही पुष्ट होता है मेरी संपत्ति कुछ यूं हैवर्षा के साथ जल कलश श्रीमन्न नारायण भजनों से हर्रावाला भक्तिमय
जहां जन्म है वही कर्म है जीवन कर्म का ही व्यर्थ पर्याय है जन्म के साथ ही कर्मों का आरंभ होता है तथा मृत्यु के साथ यह समाप्त होते हैं इसलिए जीवन ही कर्म है तथा मृत्यु कर्म का अभाव है मृत्यु के बाद चित पर उनकी स्मृतियां शेष रह जाती हैं जो कई वासनाओं को जन्म देती है यही नए जन्म के कारण है जगत की गति वृताकार है इसका ना कहीं आदि है न अंत सृष्टि निर्माण एवं विध्वंस का कार्य सतत रूप से चल रहा है जहां यह व्रत पूरा हो जाएगा तथा पुनः नई सृष्टि के लिए अवसर उपस्थित हो जाएगा इसी प्रकार कर्म और वासनाओं की गति वृताकार है कर्म से स्मृति और संस्कार बनते हैं तथा इन संस्कारों के कारण वासना उठती है जिससे कर्म होते हैं इस वासना से ही जन्म मृत्यु एवं पुनर्जन्म का चक्र आरंभ होता है वासनाओं का मूल अहंकार है तथा अहंकार के गिरने से वासनाये भी समाप्त हो जाती हैं इन भोगों से अहंकार ही पुष्ट होता है मेरी संपत्ति कुछ यूं है। आज विशेष रुप से श्रीमती शान्ति देवी, सुरेश, नवीन, प्रवीण, मुकेश, सतीश, दिनेश भट्ट, कृष्ण कुमार जुगरान, प्रसन्ना काला, ललित भट्ट, रमेश,मदन, राजेंद्र भट्ट, आचार्य दिनेश नौटियाल, प्रेम प्रकाश कुकरेती, भाजपा के संजय ठाकुर, विनोद कुमार, पार्षद , भगवतीप्रसाद कपरूवान, सुशील ममगाईं, मनोज ममगाईं, घनानन्द गोदियाल, राजेंद्र भंडारी, बलवंत सिंह रावत, मीना भट्ट, माधुरी, पूनम, प्रीति, रचना, अर्चना, चंद्रप्रकाश, प्रसन्ना, मीना कुकरेती, आचार्य दामोदर प्रसाद सेमवाल, आचार्य विश्वदीपक गौड़, आचार्य हिमांशु मैठाणी, आचार्य अंकित केमनी, आचार्य सुनील ममगाईं आदि मौजूद रहे।

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