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कहानीकार शूरवीर रावत द्वारा लिखित रुकी हुई नदी कहानी संग्रह पर आज देहरादून में एक संवाद गोष्ठी का आयोजन किया गया। साहित्यकारों ने सम्मिलित कहानियों की समीक्षा की व कहानियों की भाषा ,शैली व बुनावट पर अपने विचार व्यक्त किए।
डॉ नंदकिशोर हटवाल ने कहा है कि कोई भी कहानी संग्रह तभी अच्छा कहलाता है जब भाषा सहज और बोधगम्य हो, उसमें शब्दों का प्रवाह हो। उन्होंने कहा कि लेखक घुमक्कड़ स्वभाव के हैं, जिन्होंने नॉर्थ ईस्ट व अनेक राज्यों का भ्रमण किया है, वहाँ की भाषा संस्कृति से रूबरू हुए हैं। आदिवासियों की भूमि पर भू माफिया के कब्जे हो रहे हैं, महिलाओं की आजादी खतरे में हैं, इसका बारीकी से वर्णन इस संग्रह के ‘विराम से पहले’ कहानी में है। नार्थ ईस्ट की भूगोल की व्यापक समझ इसमें दिखाई देती है। उन्होंने कहा कोविड-19 की खबरें अखबारों और टीवी में देखने को मिली लेकिन ‘द क्वारंटीन डेज’ पर पहाड़ के गांव में जिस तरह से घटनाएं कोविड-19 में हुई है वह कहानी के रूप में पहली बार पढ़ने को मिली।
रमाकांत बेंजवाल ने कहा कि ‘रुकी हुई नदी’ कहानी संग्रह की 13 कहानियों में शुरुआती अंश बेहतरीन ढंग से लिखे गए हैं। शुरुआत में लिखी गई भाषा किताब को पूरी पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं। उन्होंने कहा हमारी परंपराओं को अभिव्यक्ति देती ये कहानियां समाज की बानगी हैं।
शशि भूषण बडोनी ने कहा कि, शूरवीर रावत की कहानियां मधुमति, किस्सा, नवल, काफल ट्री, युगवाणी सहित अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित और समय समय पर आकाशवाणी से प्रसारित हुई हैं। यह कहानी संग्रह संस्कृति, लोक भाषा, लोक साहित्य, परिवेश, रहन-सहन, लोकरंग प्रदर्शित करता है।
जनकवि व पर्यावरणविद चंदन सिंह नेगी ने कहा है कि लालसा, पुरस्कार, अधूरी जात्रा, विराम से पहले, खीर का स्वाद, और भी हैं राहें, कहानियाँ बेहतरीन लिखी गयी हैं। उन्होंने कहा यह एक दर्पण की तरह उनका मार्गदर्शन करती हैं तो वहीं ये युवा पीढ़ी को भी अपनी परंपरा व संस्कृति से रूबरू कराती हैं।
ख्यातिनाम लेखक महावीर रवांल्टा ने कहा है कि शूरवीर रावत का नाम पढ़कर यह लगता है कि इसमें पहाड़ के जनजीवन लोकरंग की कहानियां ही लिखी गई होंगी, परंतु कहानी संग्रह में 4 कहानियां पूर्वोत्तर भारत के जनजीवन व संस्कृति को लेकर है। जो कि हमारे लिए नई खिड़कियां खोलती हैं।
डॉ सत्यानंद बडोनी ने कहा कि ‘रुकी हुई नदी’ में उत्तराखंड के गढ़वाल, कुमाऊं की लोक भाषाओं के अतिरिक्त पूर्वी पर्वतीय अंचलों के आंचलिक शब्दों का अकूत प्रयोग हुआ है।आप कथानक के माध्यम से हास- परिहास राग -अनुराग विरह- मिलन और कथा- व्यथा का मार्मिक वर्णन करने वाले दक्ष कथाकार हैं।
‘रुकी हुई नदी’ के लेखक शूरवीर रावत ने कहा कि कहानियों को आम बोलचाल की भाषा में लिखने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि इस कहानी संग्रह को लिखने के लिए उन्होंने बहुत सारी यात्राएं की।
कहानी संग्रह को काव्यांश प्रकाशन ऋषिकेश ने प्रकाशित किया है। प्रकाशक प्रबोध उनियाल ने इस अवसर पर कहा कि इस तरह की कहानियां समाज में व्यापक प्रभाव डालती है। ये संग्रह पढ़ा जाना चाहिए।
पत्रकार शीशपाल गुसाईं ने ‘रुकी हुई नदी’ और ‘बहुत देर बाद’ कहानी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन कहानियों को वही लोग लिख सकते हैं जिन्होंने गांव का जीवन जिया, जिन्होंने विधवा महिलाओं की पीड़ा समझी हो, किसी एमएससी पास लड़के को होटल की नौकरी करते हुए देखा हो। उन्होंने कहा साहित्यकार शूरवीर रावत टिहरी के मदननेगी के समीप गांव हैं, गांव से वह इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए प्रताप इंटर कॉलेज टिहरी में 70 के दशक में आते थे, आज वह इंटर कॉलेज टिहरी बांध की झील में डूब गया है और वह पगडंडी भी काफी ऊंचाई तक डूब गई है। अब उनका पहाड़ी पर गांव बचा हुआ है जहां से वह लोक जीवन की वास्तविक कहानियों का संसार देख रहे हैं।
इस मौके पर लेखक अजय सिंह, सुरुचि ,अभिजीत निराला, प्रकाश चंद, हरीश थपलियाल सहित अनेक लोग मौजूद रहे।
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