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केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 वरखेड़ी का ’प्रत्येक परिसर में प्रवास’ कार्यक्रम
पांच दिन तक कभी भी कहीं भी मिल सकता है कोई भी कर्मचारी, अध्यापक और छात्र
कर्मचारियों के परिजनों से अचानक मिलने पहुंचे, बच्चों को पढ़ाया, शिक्षकों के ज्ञान का किया आकलन
डॉ0वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल
देवप्रयाग। तनावमुक्त वातावरण का निर्माण, हल्की-फुल्की हंसी मजाक, हर प्रकार की समस्या को गंभीरता से सुनना और निस्तारण का आश्वासन, आत्मीय व्यवहार, सभी के साथ जमीन में बैठकर भोजन करना, एसी नहीं चल रहा है-कोई बात नहीं, कर्मचारियों में अनावश्यक भय नहीं, 18 घंटों में कभी भी समस्यायें सुनना, सबको सुनना…..आदि आदि। किसी संस्था में ऐसा बॉस हो तो उसका सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचना स्वाभाविक है।
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में इन दिनों ऐसे ही उन्मुक्त और आनंदमय वातावरण के कारण कर्मचारियों में उत्साह है तो छात्रों के चेहरों पर प्रसन्नता। कर्मठ और संघर्षशील कुलपतियों में गिने जाने वाले प्रो0 श्रीनिवास वरखेड़ी ने विश्वविद्यालय को उच्च शिखर पर पहुंचाने के उद्देश्य से ’प्रत्येक परिसर में प्रवास’ नामक अभियान आरंभ किया है। इसके अंतर्गत उन्होंने पहले परिसर के रूप में श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग(उत्तराखण्ड) को चुना है। विश्वविद्यालय को नैक मूल्यांकन में सर्वोच्च श्रेणी ए प्लस प्लस मिलने के बाद पहली वे इस परिसर में आये हैं। वे यहां पांच दिन तक रहेंगे। इसी प्रकार वे सभी परिसरों में प्रवास करेंगे। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम, निर्माणाधीन देवप्रयाग परिसर के कार्य प्रगति जानने तथा परिसर की भावी योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर वे इन दिनों यहां आकर गंभीर होमवर्क में जुटे हैं।
देश के विभिन्न राज्यों में स्थित 12 परिसरों वाले इस विश्वविद्यालय को संभाल रहे कुलपति प्रो0 वरखेड़ी कभी अचानक किसी क्लास रूम में पहुंच कर एक अध्यापक बन जाते हैं और बच्चों को पढ़ाने लगते हैं। वे बच्चों के साथ एक साधारण अध्यापक की तरह घुल-मिल जाते हैं और बातों-बातों में उनके ज्ञान तथा मंशा का आकलन कर लेते हैं। वे किसी कर्मचारी की कार्य संबंधी, पारिवारिक तथा निजी समस्याओं को जानने का प्रयास करते हैं। हर वर्ग के कर्मचारी के कष्ट और उत्साह को शिद्दत महसूस कर वे गहन संवेदनशीलता का परिचय देते हैं। खाली समय में सरकारी आवासों में घर-घर जाकर कर्मचारियों के परिजनों से मुलाकात करते हैं। कुलपति प्रो0 वरखेड़ी इस परिसर को अपने अनुसार ही विकसित नहीं करना चाहते, अपितु अपने सपनों के महायज्ञ में सभी की आहुतियां डलवाने चाहते हैं। वे एक-एक कर सभी प्राध्यापकों और कर्मचारियों से सुझाव लेकर उन पर गंभीर चिंतन करते हैं। कभी-कभी अपने कार्य में अत्यधिक व्यस्त होने के कारण वे समस्त स्टाफ को कहते हैं-आप अपने-अपने कार्यों और योग दिवस के कार्यक्रम की तैयारी में लगे रहें, अनावश्यक मेरे इर्द-गिर्द आने की आवश्यकता नहीं है, जब आवश्यकता होगी, बुला लूंगा। परिसर कैसा हरा-भरा हो, वे इसके लिए पौधरोपण के लिए स्थान चिह्नित करके बताते हैं। यहां किस प्रकार के वृक्ष जीवित रहेंगे, इसके लिए भी वे सुझाव देते हैं।
आपका समय बहुमूल्य है, एक परिसर में इतना लंबा समय क्यों बिताने का विचार बनाया? इस प्रश्न के उत्तर में वे कहते हैं-’’आप में से 80 प्रतिशत लोग मुझसे दिल्ली में मिलने नहीं आ सकते हो, क्योंकि आपकी बहुत-सी मजबूरियां हैं। किसी तरह दिल्ली पहुंच भी गये तो मिलने में आपको अनेक औपचारिकताओं से जूझना होता है तथा बातचीत करने का समय भी कम मिलता है। वहां खुलकर बात भी नहीं कर पाते हैं। इसलिए मैं आपको इत्मीनान से सुनने के लिए यहां आया हूं।’’
वीसी महोदय के इन विचारों को सुन कर्मचारियों, अध्यापकों और छात्रों के मन में एक उम्मीद जगती है और उत्साह का वातावरण बनता है।
कुलपति प्रो0 वरखेड़ी कहते हैं-’’मैं विश्वविद्यालय को एक संस्थान ही नहीं, परिवार मानता हूं। इस परिवार का संरक्षक होने के नाते सभी सदस्यों का दुःख जानना और उसका निस्तारण करना मेरा परम नैतिक कर्तव्य है। इसलिए मैं हर कर्मचारी ही नहीं, उसके परिजन से भी जुड़ने का प्रयास करता हूं।’’ इन दिनों यूनिवर्सिटी के अनेक वरिष्ठ प्रोफेसरों के साथ प्रो0 वरखेड़ी छात्रावास में ही बच्चों के साथ टाटपट्टी पर बैठकर भोजन करते हैं। सुबह-शाम प्रायः अकेले वाक पर निकल लेते हैं। क्या छात्र, क्या कर्मचारी, जो जहां मिला, वहीं पर उसके मन की बात जानने लगते हैं। कुछ उसकी सुनते हैं, कुछ अपनी कहते हैं। यूनिवर्सिटी के इस खुशुनुमा माहौल पर एक छात्र कहता है-पहली बार ऐसा वातावरण देखा है, कभी-कभी तो लगता है कि कहीं यह सपना तो नहीं।
उल्लेखनीय है कि प्रो0 वरखेड़ी ने लगभग डेढ़ वर्ष पहले केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति की कमान संभाली है। पहले यह यूनिवर्सिटी नैक मूल्यांकन में ए श्रेणी प्राप्त थी, इस बार ए प्लस प्लस मिला है। यूनिवर्सिटी में अपने छोटे से कार्यकाल में अभी तक उन्होंने अनेक लंबित समस्याओं का निस्तारण किया है। श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर की मातृ संस्था के दो प्राध्यापकों को विश्वविद्यालय में मर्ज करवाना, परिसर के रुके निर्माण कार्य को वित्तीय सहायता दिलवाकर शुरू करवाना, कुछ अतिथि अध्यापकों को संविदा में प्रोन्नत करवाना इत्यादि उपलब्धियां उनके खाते में हैं।
देवप्रयाग परिसर को संस्कृत शिक्षा के उच्च केंद्रों मंे शुमार करवाना उनका सपना है। इस परिसर में निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है। भौतिक विकास के बाद अब कुलपति का फोकस इसके शैक्षिक विकास पर है। वे कहते हैं यूनवर्सिटी का हर कर्मचारी मेरे लिए बहुमूल्य और महत्त्वपूर्ण है। कर्मचारी के विकास में ही बहुत हद तक किसी संस्था का विकास निहित होता है।
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