शेयर करें
हिंदू मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मकमल को देव पुष्प का दर्जा दिया गया है। यह दुर्लभ फूल हिमालय के बुग्यालों में पाया जाता है, जहां मानवीय गतिविधि बिल्कुल शून्य होती है। लेकिन लोक मान्यताओं और आस्था के कारण लोग यहां पहुंचकर इस देव पुष्प को तोड़कर ले जाते हैं, जिससे इस फूल के बीज से नए पौधे बनने की प्रक्रिया में कमी आ रही है। आलम यह है कि अब चुनिंदा जगहों पर ही ब्रह्मकमल देखने को मिल रहा है।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में खिलता है ब्रह्मकमल
ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प है। राज्य के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ब्रह्मकमल खिलता है, जिसमें मुख्य रूप से चमोली जिले के बेदनी बुग्याल, रूपकुंड, द्रोणागिरी, बद्रीनाथ के बुग्याल, रुद्रप्रयाग क्षेत्र के केदारघाटी के उच्च हिमालय में यह पुष्प खिलता है। इसके अलावा उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश के कई बुग्यालों में भी ब्रह्मकमल देखने को मिल जाता है।
आस्था के नाम पर दोहन
पर्यावरणविद कल्याण सिंह रावत का कहना है कि बुग्यालों की ओर बढ़ती मानव गतिविधि, धर्म और आस्था के नाम पर ब्रहम कमल का दोहन करने से यह पुष्प विलुप्ति की कगार पर पहुंचने वाला है। उत्तराखंड व हिमाचल में जो दैवीय यात्राएं जून से अगस्त माह तक चलती हैं, उस दौरान कंडियों में भर भर कर ब्रह्मकमल को तोड़कर लाया जाता है। अगर इसी तरह से आस्था के नाम पर ब्रह्मकमल का दोहन होता रहा तो इसके फूलों से बीज नहीं बन पायेंगे। अगर बीज नहीं बनेंगे, तो और ब्रह्मकमल कैसे खिलेगा।
About Post Author
Post Views:
28